गुलामी की कील है निजीकरण..!

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गुलामी की कील है निजीकरण..!
गुलामी की कील है निजीकरण..!
राजू यादव
राजू यादव

आज सरकार सरकारी विभागों को लगातार निजीकरण करने पर आतुर है। देश की जनता यह जानना चाहती है कि निजीकरण के क्या फायदे और नुकसान हैं ? इसका गरीब मध्यमवर्ग और मजदूरों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? आज देश का हर आम आदमी स्वास्थ्य,शिक्षा,महंगाई, बेरोजगारी से तंग आ चुका है। ऐसे में सरकार द्वारा बताया जा रहा है कि निजी करण होने से यह सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी। क्या ऐसा संभव है। गुलामी की कील है निजीकरण..!

भारत के निवासियों पर कुछ ऐसा नशा चढ़ा है वह बहुत कुछ भूले जा रहे हैं। निजीकरण गुलामी का वह दसं जिसे निकले हुए अभी 100 वर्ष भी नहीं हुए। आज हम फिर उसी ओर तेजी बढ़ चले हैं। आज भारत में पढ़े-लिखे लोग भी निजीकरण को बहुत हल्के में ले रहे हैं। गुलामी की कील है निजीकरण..! जो धीरे-धीरे आपका गला घोंट देगा !! “बेहिसाब पॉवर या बेसुमार पैसा” भले ही डॉयलॉग किसी फिल्म का हो लेकिन इस समय जिस तरह देश कॉर्पोरेट के हाथों में जा रहा है। उससे यह डायलॉग सच होने में देर नहीं लगेगी। भारत का सब कुछ कुछ लोगों के हाथ में ही होगा।वह कुछ लोग कौन होंगे यह सोचना आप का काम है। वह समय दूर नहीं जब इतिहास पढ़ाया जाएगा। भारत कि आखिरी सरकारी ट्रेन, आखिरी सरकारी बस,आखिरी सरकारी बिजली कंपनी,आखिरी सरकारी हवाई अड्डा और आखिरी सार्वजनिक उद्यम भी था…..?

यदि किसी सरकारी उपक्रम या सरकारी संस्थान का निजीकरण किया जाता है, तो आम जनता व देश के स्तभों की चुप्पी एक दिन पूरे देश को भारी पड़ेगी। क्योंकि,जब सारे स्कूल, अस्पताल,रेलवे स्टेशन,एयरपोर्ट, बिजली, पानी, सब निजी हाथों में होंगे ! तब आप देखेंगे कि तानाशाही क्या होती है….? याद रखें, सरकार और सरकार की पहल का लक्ष्य न्यूनतम लागत पर अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचना होता है। जबकि निजी कम्पनियों का लक्ष्य न्यूनतम लागत के साथ अधिक से अधिक लाभ कमाना होता है। इसमें कोई संदेह नहीं है,कि इससे वर्तमान की तुलना में अधिक बेरोजगारी और अल्प-रोजगार होगा। उदाहरण के लिए आज आप निजी स्कूलों, निजी अस्पतालों का हाल देखिए ! आम आदमी के घर-बार और जमीन स्कूल और अस्पताल में प्रवेश करते ही बिकना शुरू हो जाता है। क्या आपको निजीकरण की साजिश पर लोगों की चुप्पी देश को कुछ उद्योगपतियों के द्वारा गुलाम बनाने की नीति के अनुकूल नहीं लगती है…..?

आज जिस निजीकरण की समाज वकालत कर रहा है। क्या उसका उसका मतलब जानता हैं समाज ?इस निजीकरण का मतलब है गुलामी इसमें केवल दलितों की गुलामी नहीं होगी वो तो पहले से ही वर्णव्यवस्था की गुलामी झेल रहे हैं हर जाति के मेहनतकश तबके की गुलामी होगी।निजी कारण से आरक्षण भी समाप्त होगा। अपने शोषण के खिलाफ बोलने के लिये कोई यूनियन नहीं, मुंह खोला तो संस्थान से बाहर होंगे।क्या यह राष्ट्रीय भक्ति मालिकों मुनाफाखोर,लुटेरों के साथ है या मेहनतकश के साथ।

आप जागो अपने अधिकारों और कर्त्तव्यों को पहचनों अपने देश और देश की सार्वजनिक संपत्ति को बचाओ। रेलवे को बचाना है,अस्पतालों और शिक्षण संस्थानों को बचाना है, सरकारी बिजली कंपनियों (MSEB), LIC, बीएसएनएल, एयर इंडिया और डाकघरों को बचाना है। सरकारी कर्मचारियों और सरकारी विभागों को बचाना है। ईस्ट इंडिया ब्रिटिश कंपनी की याद आती है। व्यापार के लिए आया और डेढ़ सौ साल तक शासन किया। ईस्ट इंडिया ब्रिटिश कंपनी से याद आता है कि कंपनी ने चाय फ्री में पिलाई थी आज हम चाय के गुलाम हो गए हैं। आज देश में एक पार्टी राष्ट्रहित की बात करते-करते शीर्ष पर है।लेकिन आज उसे भी फ्री की लत लगाने की राजनीति में मजा आने लगा है।यही पार्टी कभी फ्री की घोर विरोधी थी। ईस्ट इंडिया ब्रिटिश कंपनी या फिर जन मन को जान फ्री की पछधर हो चली है। मुश्किल समय में जनता के काम करने के लिए सरकारी विभाग या फिर सरकार ही आगे आते रहें हैं। आम जनता के लिए कोई निजी क्षेत्र काम नहीं करता। जिसका उदाहरण आपने हाल ही में कोरोना काल में देखा होगा.. मजदूरों, श्रमिकों और छात्रों को ले जा रही निजी बसें…? कितने निजी संगठन और गैर सरकारी संगठन जमीनी स्तर पर लोगों की मदद कर रहे थे…? कौन सी निजी एयरलाइन कोविड कॉल में भारतीयों को एयरलिफ्ट कर रही थी ….? कितने प्राइवेट पायलटों ने तालिबान में घुसपैठ कर देशवासियों को बाहर निकाला …..?

गुलामी की कील है निजीकरण..!

‘यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे। यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे। यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे। यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे। और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं। – आभा शुक्ला, प्रख्यात लेखिका एवं सामाजिक कार्यकर्ता

इसलिए हर भारतीय नागरिक को अपने अधिकारों और कर्त्तव्यों को पहचानना चाहिए। निजीकरण का विरोध करना चाहिए, नहीं तो भविष्य में कुछ उद्योगपति ही इस देश को अपने घर से चलाएंगे और पूर्वी भारत का युग फिर से आएगा। इस बार सत्ता और अधिकार उन्हीं के हाथ में होगा जो ऐसा सोचते हैं। राजनीतिक सत्ता तो दिखावा बनकर रह जाएगी, यह बात निजीकरण के पछधर लोग समझ नहीं पा रहे हैं। क्योंकि कुछ लोग अपने दिमाग से खेल रहे हैं..! बस दो ही तरीके हैं, या तो आप…….. जैसे बड़े उद्योगपति बन जाते हैं। जो कि संभव नहीं ताकि गरीब और मध्यम वर्ग रह सके। एक उदाहरण को समझो मोबाइल डाटा या फिर टॉक टाइम… डाटा…पहली बार.. फ्री,बाद में रु. 49/-,फिर रु. 99/-,बाद में रु. 149/-,तो फिर 199/-,बाद में रु. 249/-,अब लगभग रु. 350 /- सिर्फ सोचिये की कितनी बढ़ोतरी हुई। जबकि बीएसएनएल में अब भी रु. 99 में 28 दिन की वैलिडिटी आती है। ये है निजीकरण का परिणाम सोचिये आज सबके पास स्मार्ट्फ़ोन नहीं है फिर भी उन्हें डाटा लेना ही पड़ेगा ओर उसकी कीमत भी देनी होगी मान न मान मैं तेरा मेहमान। भारतीय कलेंडर में 12 माह होते हैं। पहले टॉकटाइम महीने में आता था अब दिन में आता है। भाव भी बढ़ गए ओर दिन भी कम हो गए। दूध हो या खाद बिस्किट हो या खाद्यपदार्थ कुछ के रेट बढ़ गए कुछ वेट कम हो गए। सरकार सफाई दे रही वज़न कम उठाना जनता कह रही मेरा तेल निकला जा रहा है।

भारत की दुरावस्था, सरकार का झूठ और भारतीय जनता के प्रधानमंत्री का सम्बोधन और मध्यवर्ग का वैचारिक खोखलापन इतिहास की सबसे भयंकर मंदी की चपेट में भारत ‘कौन है अरबन नक्सल ?’ क्या हम वैश्विक मंदी की ओर बढ़ रहे हैं ? कॉरपोरेटपरस्त राजनीति हाशिए पर धकेल रही है आम आदमी केन्द्रित राजनीति को नए नोट छापने से रिजर्व बैंक का इन्कार यानी बड़े संकट में अर्थव्यवस्था अमिताभ कांत जैसे लोगों की वैचारिक असलियत का पर्दाफाश होना चाहिए।

गुलामी की कील है निजीकरण..!

निजीकरण से आम आदमी पर असर किसी सरकारी उपक्रम या सरकारी संस्थान का निजीकरण किया जाता है तो आम जनता को सबसे ज्यादा नुकसान होता है। क्योंकि जब सारे स्कूल, कालेज सारे अस्पताल, सारे रेलवे स्टेशन एयरपोर्ट, बिजली, पानी, बैंक,बीमा सब के सब निजी हाथों में होंगे तो निजी कंपनियां अपनी मनमानी करेंगी। सरकार स्वामित्व समाप्त होने से कंपनियों पर कोई रोक टोक नहीं होगा।सरकार की पहल का लक्ष्य न्यूनतम लागत पर अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचना है। अतएव निजी कम्पनियों का लक्ष्य न्यूनतम लागत के साथ अधिक से अधिक लाभ कमाना है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भविष्य में वर्तमान की तुलना में अधिक बेरोजगारी और अल्प-रोजगार होगा।

वर्तमान समय में निजी सस्थानों और सरकारी सस्थानों में फर्क देख सकते हैं। जहां सरकारी अस्पतालों में 1 रूपये के पर्चे में डाक्टर देख लेता है और दवा भी मिल जाती है। वहीं निजी अस्पातलों में 500-1000 रुपये तो मात्र परामर्श शुल्क होता है।दवा भूल ही जाइये। वही हाल निजी स्कूलों का भी है। निजीकरण से देश पूरी तरह उद्योगपतियों के हाथों में जा रहा है। जिससे आम आदमी पर भारी संकट आ जायेगा।उद्योगपतियों के लिए निजीकरण नीति अनुकूल है। जिससे उनको काम लागत में ज्यादा मुनाफा होगा और वो हजारों करोंड़ो कमाएंगे। पर आम आदमी का उतना ही नुकसान होगा उनको कम पैसे में ज्यादा काम करना होगा।

हमारे देश में प्रमुख रूप से 2 तरह के कर्मचारी काम करते हैं एक स्थाई और दूसरा अस्थाई। देश में स्थाई कर्मचारी को सातवां वेतन दीया जाने का प्रावधान है। दूसरी तरफ अस्थाई रूप से काम कर रहा कर्मचारी {ठेकावर्कर या आउटसोर्स} को न्यूनतम वेतन से संतोष करना पड़ता है। सही मायने में तो यह है कि कुछ जगह पर उनको न्यूनतम वेतन भी नहीं मिलता है। ऐसे में इन अस्थाई कर्मचारियों के द्वारा समय-समय पर स्थाई करने की मांग उठती रहती है। जिससे उनके और उनके परिवारों की दशा और दिशा में सुधार आ सके। अब अगर सरकारी विभाग ही निजी हाथों में चला जाएगा तो इन अस्थाई कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन भी देंगे यह कहना जरा मुश्किल होता है। देश की आजादी के बाद आम लोगों की मेहनत से अर्थव्यवस्था को खड़ा किया गया था। जिसमें हमारे पूर्वजों के टैक्स की गाढ़ी-कमाई से कंपनी स्कूल-कॉलेज,संस्थान और अस्पताल बना था। जिससे देश के सभी लोगों को समान रूप से मुफ्त या फिर कम पैसे में स्वास्थ्य,शिक्षा,परिवहन और स्कूल की सुविधा मोहिया हुई थी। आज हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे तो सरकार संस्थानों का निजीकरण करना चाहती है। अब सवाल यह उठता है कि जब कंपनियां निजी हाथों में दे दी जाएंगी तो क्या वह इस तरह के सुविधा में उपलब्ध करा पाएंगे शायद संभव नहीं….!


आज देश के कुछ नागरिक करप्शन की बात कह कर निजीकरण की व्यवस्था को अधिक उपयोगी मानते हैं।पर हम अपने अनुभव से कुछ तथ्य सामने रखना चाहेंगे जिसका एक उदाहरण है सरकारी शिक्षा या फिर अस्पताल। आज हम अपने बच्चों का प्राइवेट स्कूल में प्रवेश दिलाने के लिए 20,000 से लेकर 500000 तक डोनेशन देने का प्रयास करते हैं और देते भी हैं। यही नहीं नामांकन करवाने के बाद भी वहां पर हम से वसूली होती है ₹100 की किताब मुझे ₹500 में खरीदनी पड़ती है। जरा आप सोचें निजीकरण के क्या फायदे हैं आज के परिदृश्य में प्राइवेट स्कूल हो या फिर अस्पताल वहां पर बिना बंदूक दिखाएं ही लूट हो रही है जहां पर हमें लूटा जा रहा है।

भारत देश कृषि प्रधान देश है। जहां की ज्यादा आबादी आज भी गांव में निवास करती है। यदि हमारे शिक्षा को निजी हाथों में दे दिया जाएगा तो क्या हमारे गांव के बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त कर पाएंगे जवाब शायद यही होगा नहीं। क्योंकि फीस तो हर देनी होगी। लेकिन हमारे किसानों के पास साल में दो से तीन बार ही पैसा आता और जाता है। जिसका परिणाम यह होगा कि हमारे देश के ज्यादातर बच्चे अशिक्षित ही रह जाएंगे जिससे देश का भविष्य क्या होगा आप खुद सोचिए।

हमारा आमजन से सवाल है क्या रेलवे का निजीकरण होना सही फैसला है? सरकार के इस फैसले से गरीब मध्यमवर्ग मजदूरों को क्या फायदा होगा…..? आज जब भी हम रेलवे काउंटर पर जाते हैं या मुझे कहीं लंबी यात्रा करनी होती है तो 3 से 4 माह पहले ही कोटा फुल हो जाता है। स्लीपर के टिकट हुए एसी के मुझे बैटिंग ही नजर आते हैं। यह हाल तो इनका है जरा आप सोचें जनरल का क्या हश्र होता होगा। जब कभी हम जनरल डिब्बों में यात्रा करते हैं तो गेट से लेकर बाथरूम तक खचाखच भरे होते हैं। ऐसे में सरकारों का यह कहना कि ट्रेनें घाटे में चल रही है यह सवाल कहां से उठता है आपको सोचना होगा। अगर रेलवे घाटे में है तो कोई उद्योगपति उसे कैसे खरीद सकता है…..? सामान्य ज्ञान के अनुसार मेरा अपना ऐसा विश्वास है कि कोई उद्योगपति घाटे का सौदा कभी भी नहीं करना चाहेगा….?

अगर निजी करण ही समस्याओं का समाधान होता तो यह सवाल उठना लाजमी है कि अगर निजी बैंक कुशल है तो क्यों डूब गए…..? या फिर क्यों सरकारी बैंकों में उनका विलय कर दिया गया….? सवाल यह भी है कि अधिकांश उद्योगपति क्यों सरकारी बैंकों से ही लोन लेना पसंद करते हैं….? क्यों निजी बैंक ढांचागत परियोजनाओं को कर्ज देने से मना करते हैं….? और ऐसा करने के लिए सरकारी बैंकों पर क्यों दबाव डाला जाता है…..? गुलामी की कील है निजीकरण..!