भाजपा मोह दलितों पिछडों का करेगा बंटाधार..!

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भाजपा मोह दलितों पिछडों का करेगा बंटाधार..!
भाजपा मोह दलितों पिछडों का करेगा बंटाधार..!


ओमप्रकाश राजभर और दारा सिंह का भाजपा मोह दलितों पिछडों का करेगा बंटाधार।

विनोद यादव
विनोद यादव

सामाजिक न्याय के लिए जरूरी हैं कि पिछड़े एंव दलित अल्पसंख्यक और आदिवासियों को उनकी संख्या के अनुरूप भागीदारी देने के लिए सबसे पहले जातिगत जनगणना कराई जाए । सरकारी संस्थाओं में दलितों पिछड़ों की संख्या के अनुपात में हिस्सेदारी दी जाए । केंद्रीय सरकार के सचिवालयम में दलित पिछड़े वर्ग के मात्र 7% लोग ही सचिव हैं कैसे पिछड़े वर्ग के लोगों का हित संभव है ? उसपर चर्चा की जाए लेकिन सत्ता में सामिल होते ही लोग भूल जाते हैं।मोदी सरकार सिर्फ पिछड़ो की बात करती है वोट लेती है उनका काम नहीं करती है पिछड़े वर्गों का सरकारी नौकरियों और उच्च पदों पर प्रतिनिधित्व घटा है। भाजपा मोह दलितों पिछडों का करेगा बंटाधार..!

शायद इसका सवाल ओमप्रकाश राजभर के कंधे पर पुनः आ जाए तो दूबारा के लिए बिलग होने पर ये दुखड़ा न रोना पडे़ की मेरी वहां कोई सुनता नहीं था इसलिए हम अलग हुए थें।खैर भेड़ के बाड़ की रखवाली काजिम्मा सियार को दे दिया जाए तो दूध खुद ही पीती हैं। यही हाल ओम प्रकाश राजभर का हैं खैर
अवसरवादी नेताओं ने समाज का बेड़ा गर्क करके रख दिया है।जिसका जीता जागता उदाहरण आज के दौर में ओम प्रकाश राजभर हैं जो सामाजिक न्याय का प्रवचन तो चर्चा में बने रहने के लिए देते रहें और मीडिया और मंचो से लच्छेदार सिर्फ भाषण रहा लेकिन दूर दूर तक उनका सामाजिक न्याय के मुद्दों से कोई सरोकार नहीं है। उन्हें केवल और केवल पिछड़ी जाति की अपनी राजभर बिरादरी को गुमराह कर साम्प्रदायिक एवं सामाजिक न्याय अथवा दलित पिछड़े अल्पसंख्यक तबके की धुर विरोधी भाजपा के साथ गलबहियां खिलाकर अपने बेटे को संसद पहुँचाने एवं टिकट नीलामी करके अकूत धन कमाने की चाह भर है बस।

भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए वाले गठबन्धन में शामिल होकर ओम प्रकाश राजभर ने यह साबित कर दिया है कि बिना आन्दोलन के जाति जाति अलापने से पनपे नेता फसली अर्थात अवसरवादी नेता होते हैं जो कि अपना हित साधने के लिए चिर विरोधी से हाथ मिलाकर समाज का बेड़ा गर्क करने का काम करते हैं।ओम प्रकाश राजभर के पास अभी मौका है 2024 का चुनाव अभी एक साल दूर है और भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन की पूर्णबहुमत सरकार है। राजभर बिरादरी को अनुसूचित जाति में शामिल करवा लें और जाति आधारित जनगणना करवा लें तथा एक समान शिक्षा भी लागू करवा लें जिससे कि जनता का सामना करने से पहले जिनके साथ गठबंधन में रहें उनको न कोसना पडे़। गौरतलब हो कि ओम प्रकाश राजभर लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियों में जुटे हुए हैं। वे जानते हैं कि करीब 5-6 फीसदी वोट शेयर के साथ वे किसी भी जीत पर किसी उम्मीदवार का खेल तो खराब कर सकते हैं, जीत दर्ज नहीं कर सकते। ऐसे में वे सत्ताधारी दल के साथ आकर लोकसभा सीटों पर सांसद बनाने में भूमिका निभाने और अपनी स्थिति को मजबूत बनाने की कोशिश करते दिख रहे हैं। इसको लेकर लगातार वह अलग रणनीति पर काम कर रहे हैं।

विरोधी तेवर ने उन्हें उस स्तर का फायदा नहीं पहुंचाया है, जिस प्रकार की उम्मीद वे कर रहे थे। ऐसे में उनकी महत्वाकांक्षा सत्ता में वापसी के साथ ही पूरी हो सकती है। समर्पित वोटरों को पावर में रहकर ही फायदा पहुंचा सकते हैं।समाजवादियों को एसी से बाहर निकलने की नसीहत देने वाले ओपी राजभर जो एक समान शिक्षा के साथ एक सांस में बावन जातियों के भागीदारी की बात करते हैं आज खुद एसी का साथ छोड़ औरों के साथ गलबहियां कर रहें हैं । खैर समाजवाद के रथ नायक अखिलेश यादव को इससे फर्क पड़ने वाला नहीं क्यूंकि उनकी पास रहने वाले नव रत्नों की एक जमात हैं जो समय समय पर बताते रहते हैं भैया ट्वीटर और फेसबुक से ही हम फतह कर लेगें सड़कों पर समाजवाद के संघर्ष की जरूरत नहीं हैं सेल्फी प्वाइंट्स से फोटो खिचवाते रहें और समाजवाद की दुहाई गाते रहें ।जब तक राजनैतिक गिरगिटों की पहचान नहीं करेगें आने वाले समय में भविष्य के अजीत चौधरी और बसपा की ही तरह सिमट कर रह जाएगें ।

फेसबुक क्रांति का रास्ता और राजनीति का प्रयोग नहीं हैं आम जनता की आवाजों को उठाया जाना चाहिए जो मनुस्ट्रीम मीडिया नहीं कर रही हैं उसके लिए यह जरुरी हैं लेकिन जिसके पीठ पर दाव लगाए वहीं छलांग मार के कुदराने लगें ये कौन सी बुद्धिमत्ता हैं खैर चुनाव जब नजदीक को तो आना जाना लगा रहता हैं लेकिन आम जन सरोकार के मुद्दों पर खामोश मिजाजी भविष्य की राजनीति के दूरगामी संकेत नहीं देती हैं।सपा को झटका देने वाले दारा सिंह चौहान का भाजपा से मोह राजनैतिक महत्वाकांक्षा से परिपूर्ण हैं।मऊ जिले की घोषी विधानसभा से समाजवादी पार्टी के विधायक दारा सिंह चौहान ने सपा एक जोरदार झटका दिया।खैर भाजपा रुपी वाशिंग मशीन में दारा सिंह पार्टी की सदस्यता लेकर पवित्रम पवित्रम होंगे।दारा सिंह चौहान ने विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना को भेजे पत्र में अपने इस्तीफे की पेशकश की थी।इससे पहले दारा सिंह 2022 में भारतीय जनता पार्टी छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हुए थे।दारा सिंह योगी सरकार में वन एवं पर्यावरण मंत्री थे।दारा सिंह के बाद जातियों का सा रा रा गाने वाले ओम प्रकाश राजभर का उसी वाशिंग मशीन में पाप धुलाने पहुचें जिसको राजनैतिक मंचों से बड़का झुट्ठा पार्टी कहां करते थें ।

वास्तव में राजनीति में कोई न स्थाई दोस्त होता हैं न कोई स्थाई दुश्मन इस लिए राजनैतिक उठापटक में बहुत ज्यादा न खुशी होने की जरूरत नहीं हैं न नाराज होने की जरूरत हैं खैर राजनैतिक करिगो के राजनैतिक महत्वा को समझने की जरूरत हैं शायद ये फसली नेताओं की श्रेणी में आते हैं। जिनका आम जन सरोकार के मुद्दे से कोई लेनादेना नहीं हैं।सुभाषपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की बातों का साफ मतलब हैं ओ सिर्फ राजभर के वोट बैंक पर सियासत करते हैं उनका जातिए जनगणना और भागीदारी से कोई सरोकार नहीं हैं यदि सरोकार होता हैं राजभर के अलावा अन्य शोषित जातियों की भागीदारी अपनी पार्टी में सुनिश्चित कराते।मसलन आज की पूरी सियासत सिर्फ अपना घर बनवाने में हैं पडोसियों का बारिश में गिर रहा उसकी चिंता नहीं खैर समाजिक न्याय और समाजवाद की बात नेताओं को मंचों से बोलना छोड़ देना चाहिए। क्यूंकि यह दोनों बाते इसने राजनैतिक जीवन में लागू नहीं होती यहीं वजह हैं खुद सरोताज कराने के चक्कर में मिशनरी से मिशन और मिशन के बाद सत्ता मिलते ही कमीशन की बात करने लगते हैं।ओपी राजभर और दारा सिंह के जाने के बाद बुहजन एंव समाजवाद की विचारधारा पर चलने वाली पार्टियों को विचार करना चाहिए आखिर हमारी कमजोरी कहां हैं और हम क्यूँ ऐसे दलों से इस्तेमाल हो जा रहें हैं जिनकी क्षमता सिर्फ एक दो विधानसभा क्षेत्र तक सीमित हैं जबतक जमीनीस्तर पर उतरकर इस सियासत को नहीं समझा जाएगा इसी तरह वक्त और समय आने पर सिकस्त मिलना तय हैं। राजनीति में नेताओं की आंख पर लगें काले चश्मे के ग्लास को पहचानने की जरूरत हैं जो बाहर से तो काला दिखता हैं जनता को मगर अंदर कुछ और रहता हैं। भाजपा मोह दलितों पिछडों का करेगा बंटाधार..!