अगर कोई मुझसे फिर कहे: “मान लो कि तुम कल मरनेवाले हो तो तुम क्या-क्या करोगे?” जवाब देने के लिए मुझे एकदम वक्त नहीं चाहिए होगा। अगर मैं उनींदा महसूस कर रहा होऊँ, मैं सो जाऊँगा। अगर मैं प्यासा होता, मैं पानी पीऊँगा। अगर मैं लिख रहा होता, तो जो लिख रहा होता उसे पसंद करता और सवाल को नज़रअंदाज़ कर देता। अगर मैं ख़ाना खा रहा होता तो मैं ग्रिल्ड मीट की स्लाइस पर थोड़ी सरसों और गोलमिर्च मिलाता। अगर मैं दाढ़ी बना रहा होता, हो सकता है मैं अपने कान की लौ काट लेता। अगर मैं अपनी महबूबा को चूम रहा होता, मैं उसके होठों को खा जाता मानो वे अंजीर हों। अगर मैं पढ़ रहा होता, मैं कुछ पृष्ठ छोड़ देता। अगर मैं प्याज़ छील रहा होता, मैं कुछ आँसू गिराता। अगर मैं चल रहा होता, मैं चलता ही रहता कुछ मंद चाल से। अगर मैं ज़िंदा होता, जैसा मैं अभी हूँ, तो मैं ज़िंदा न होने के बारे में कुछ न सोचता। अगर मैं न होता, तो सवाल मुझे परेशान ही न करता। अगर मैं मोत्ज़ार्ट को सुन रहा होता तो मैं फ़रिश्तों की दुनिया के आसपास होता। अगर मैं सो रहा होता, तो मैं सोता रहता और चैन से गार्डेनिया के सपने देखता रहता। अगर मैं हँस रहा होता, तो मैंने अपनी हँसी बीच में रोक दी होती इस सूचना के लिए सम्मान के चलते। और मैं कर भी क्या सकता था, अगर मैं बहादुर ही होता एक अहमक से अधिक और ताकतवर होता हरक्यूलियस से ज़्यादा?
फ़िलिस्तीनी कवि
अरबी से अंग्रेज़ी अनुवाद : कैथरीन कॉबम
हिंदी अनुवाद: अपूर्वानंद
संकलन : कविता का काम आँसू पोंछना नहीं
प्रकाशन : जिल्द बुक्स, दिल्ली, 2023
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सोमवार, 1 जनवरी 2024
रविवार, 31 दिसंबर 2023
आख़िरी ट्रेन रुक गई है (Mahmoud Darwish translated into Hindi)
आख़िरी ट्रेन आख़िरी प्लेटफ़ॉर्म पर रुक गई है। वहाँ कोई नहीं है
गुलाबों को बचाने के लिए, कोई कबूतर नहीं शब्दों से तामीर की गई औरत पर उतरने के लिए।
वक्त ख़त्म हो चुका है। गाना बेहतर नहीं है झाग के मुक़ाबले।
हमारी ट्रेनों पर भरोसा मत करो, प्यारे। भीड़ में किसी का भी इंतज़ार मत करो।
आख़िरी ट्रेन रुक गई है आख़िरी प्लेटफ़ॉर्म पर। लेकिन कोई भी
नारसीसस की छाया नहीं डाल सकता वापस रात के आईनों में।
मैं कहाँ लिख सकता हूँ देह के अवतार का अपना सबसे ताज़ा वृत्तांत?
यह अंत है उसका जिसका अंत होना ही था। वह कहाँ है जिसका अंत होता है?
मैं कहाँ ख़ुद को अपनी देह में अपने वतन से आज़ाद कर सकता हूँ?
हमारी ट्रेनों पर भरोसा मत करो, प्यारे! आख़िरी कबूतर उड़ गया है।
आख़िरी ट्रेन आख़िरी प्लेटफार्म पर रुक गई है। और वहाँ कोई नहीं था।
फ़िलिस्तीनी कवि : ग़स्सान ज़क़तान
अरबी से अंग्रेज़ी: मुनुर अकाश और कैरोलिन फ़ॉश
हिंदी में : अपूर्वानंद
संकलन : कविता का काम आँसू पोंछना नहीं
प्रकाशन : जिल्द बुक्स, दिल्ली, 2023
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महमूद दरवेश,
विदेशी कविता,
हिन्दी अनुवाद
गुरुवार, 28 दिसंबर 2023
भजन (Mahmoud Darwish translated into Hindi)
जिस दिन मेरी कविताएँ मिट्टी से बनी थीं
मैं अनाज का दोस्त था।
जब मेरी कविताएँ शहद हो गईं
मक्खियाँ बस गईं
मेरे होठों पर।
फ़िलिस्तीनी कवि : महमूद दरवेश
अरबी से अंग्रेज़ी: अब्दुल्लाह अल-उज़री
हिंदी अनुवाद : अशोक वाजपेयी
संकलन : 'कविता का काम आँसू पोंछना नहीं' में मूल मॉडर्न पोइट्री ऑफ़ द अरब वर्ल्ड, पेंगुइन बुक्स, 1986 से
प्रकाशन - जिल्द बुक्स, 2023
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अशोक वाजपेयी,
महमूद दरवेश,
विदेशी कविता,
हिन्दी अनुवाद
रविवार, 19 मार्च 2023
चीज़ें और हम (by Mahmoud Darwish, translated into Hindi)
हम चीज़ों के मेहमान थे, उनमें से ज़्यादातर को
हमसे कम परवाह है जब हम उन्हें छोड़ते हैं
एक मुसाफ़िर विलाप करता है,और नदी उस पर हँसती है
गुज़र जाओ, क्योंकि कोई नदी तक़रीबन वैसी ही होती है आरंभ में जैसी वह अंत में होती है
कुछ भी इंतज़ार नहीं करता, चीज़ें उदासीन हैं
हमारे प्रति, हम उनका अभिनंदन करते हैं और उनके प्रति कृतज्ञ होते हैं
लेकिन चूँकि हम उन्हें कहते हैं अपनी भावना
हम नाम में यक़ीन करते हैं। क्या उनकी असलियत है उनके नाम में?
हम चीज़ों के मेहमान हैं, हममें से अधिकतर
अपनी शुरुआती भावनाएँ भूल जाते हैं, और उनसे इन्कार करते हैं।
फ़िलिस्तीनी कवि - महमूद दरवेश
संकलन - A River Dies Of Thirst
अरबी से अंग्रेज़ी अनुवाद - कैथरीन कॉबम (Katherine Cobham)
अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद - अपूर्वानंद
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मंगलवार, 14 जून 2022
धरती (Earth Poem by Mahmoud Darwish, translated in Hindi)
उदास शाम एक उजड़े हुए गाँव में
आँखें अधनींदी
मैं याद करता हूँ तीस साल
और पाँच युद्ध
उम्मीद करता हूँ कि मुस्तकबिल रखेगा महफ़ूज़
मेरी मक्के की बालियाँ
और गायक गुनगुनाएगा
आग और कुछ अजनबियों के बारे में
और शाम बस किसी और शाम की तरह होगी
और गायक गुनगुनाएगा
और उन्होंने उससे पूछा :
तुम क्यों गाते हो
और उसने जवाब दिया
मैं गाता हूँ क्योंकि मैं गाता हूँ ...
और उन्होंने उसका सीना टटोला
लेकिन उसमें पा सके सिर्फ उसका दिल
और उन्होंने उसका दिल टटोला
लेकिन पा सके सिर्फ उसके लोग
और उन्होंने उसका स्वर टटोला
लेकिन पा सके सिर्फ उसकी वेदना
और उन्होंने उसकी वेदना टटोली
लेकिन पा सके सिर्फ उसकी जेल
और उन्होंने उसकी जेल टटोली
लेकिन देख सके वहाँ खुद को ही जंजीरों में बँधा हुआ
फ़िलिस्तीनी कवि - महमूद दरवेश
स्रोत - https://www.poemhunter.com/poem/earth-poem-3/
हिन्दी अनुवाद - अपूर्वानंद
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गुरुवार, 16 अगस्त 2018
उदासीन बंदा (The Indifferent One by Mahmoud Darwish)
उसे किसी चीज़ से फ़र्क़ नहीं पड़ता। अगर वे उसके घर का पानी काट दें,
वह कहेगा, “ कोई बात नहीं, जाड़ा क़रीब है।”
और अगर वे घंटे भर के लिए बिजली रोक दें वह उबासी लेगा:
“कोई बात नहीं, धूप काफ़ी है”
अगर वे उसकी तनख़्वाह में कटौती की धमकी दें, वह कहेगा,
“कोई बात नहीं! मैं महीने भर के लिए शराब और तमाखू छोड़ दूँगा।”
और अगर वे उसे जेल ले जाएँ,
वह कहेगा, “कोई बात नहीं, मैं कुछ देर अपने साथअकेले रह पाऊँगा, अपनी यादों के साथ।”
और अगर उसे वे वापस घर छोड़ दें, वह कहेगा,
“कोई बात नहीं, यही मेरा घर है।”
मैंने एक बार ग़ुस्से में कहा उससे, कल कैसे रहोगे तुम?”
उसने कहा, “कल की मुझे चिंता नहीं। यह एक ख़याल भर है
जो मुझे लुभाता नहीं। मैं हूँ जो मैं हूँ: कुछ भी बदल नहीं सकता मुझे, जैसे कि मैं कुछ नहीं बदल सकता,
इसलिए मेरी धूप न छेंको।”
मैंने उससे कहा, “न तो मैं महान सिकंदर हूँ
और न मैं (तुम?) डायोजिनिस”
और उसने कहा, “लेकिन उदासीनता एक फ़लसफ़ा है
यह उम्मीद का एक पहलू है।”
फ़िलीस्तीनी कवि - महमूद दरवेश
संकलन - Unfortunately, It was Paradise
प्रकाशन- यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफोर्निआ प्रेस, 2003
अनुवाद एवं संपादन - Munur Akash and Carolyn Forche
with Simon Antoon and Amira El-Zein
अंग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद - अपूर्वानंद
बुधवार, 15 अगस्त 2018
हम एक जन बन सकेंगे (By Mahmoud Darwish)
हम एक जन हो सकेंगे, अगर हम चाहें, जब हम सीख लेंगे कि
हम फ़रिश्ते नहीं, और शैतानियत सिर्फ़ दूसरों का विशेषाधिकार नहीं
हम एक जन हो सकेंगे, जब हम हर उस वक़्त पवित्र राष्ट्र को शुक्राना देना बंद करेंगे जब भी एक ग़रीब शख़्स को रात की एक रोटी मिल जाए
हम एक जन बन सकेंगे जब जब हम सुल्तान के चौकीदार और सुल्तान को बिना मुक़दमे के ही पहचान लेंगे
हम एक जन बन सकेंगे जब एक शायर एक रक्कासा की नाभि का वर्णन कर सकेगा,
हम एक जन बन सकेंगे जब हम भूल जाएँगे कि हमारे क़बीले ने क्या कहा है हमें, और जब वाहिद शख़्स छोटे ब्योरे की अहमियत भी पहचान सकेगा
हम एक जन बन सकेंगे जब एक लेखक सितारों की ओर सर उठा कर देख सकेगा, बिना यह कहे कि हमारा देश अधिक महान है और अधिक सुंदर
हम एक जन बन सकेंगे जब नैतिकता के पहरेदार सड़क पर एक तवायफ़ को हिफ़ाज़त दे पाएँगे पीटने वालों से
हम एक जन बन पाएँगे जब फ़िलीस्तीनी अपने झंडे को सिर्फ़ फ़ुटबाल के मैदान में, ऊँट दौड़ में और नकबा के रोज़ याद करे
हम एक जन बन सकेंगे अगर हम चाहें, जब गायक को एक दो माखन के लोगों की शादी के वलीमा पर सूरत अल रहमान पढ़ने की इजाज़त हो
हम एक जन बन सकेंगे जब हमें तमीज हो सही और ग़लत की
फ़िलीस्तीनी कवि - महमूद दरवेश
संकलन - A River Dies Of Thirst
अंग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद - अपूर्वानंद
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विदेशी कविता,
हिन्दी अनुवाद
मंगलवार, 14 अगस्त 2018
मैं कुछ अधिक बात करता हूँ (I Talk Too Much by Mahmoud Darwish)
मैं कुछ अधिक बात करता हूँ औरतों और वृक्षों के बीच की बारीकी के बारे में,
पृथ्वी के जादू के बारे में,
ऐसे एक मुल्क के बारे में जिसके कोई पासपोर्ट की मुहर नहीं,
मैं पूछता हूँ: क्या यह सच है भली देवियो और सज्जनो,
मैं पूछता हूँ: क्या यह सच है भली देवियो और सज्जनो,
कि यह जो इंसान की धरती है वह सारे मनुष्यों के लिए है
जैसा आप कहते हैं? वैसी हालत में कहाँ है मेरी नन्हीं कुटिया और कहाँ हूँ मैं?
जैसा आप कहते हैं? वैसी हालत में कहाँ है मेरी नन्हीं कुटिया और कहाँ हूँ मैं?
कॉन्फ़रेंस के प्रतिभागी और तीन मिनट तालियाँ बजाते हैं मेरे लिए,
तीन मिनट आज़ादी के और मान्यता के,
कॉन्फ़रेंस हमारे लौटने के अधिकार को स्वीकार करती है ,
सारी मुर्ग़ियों और घोड़ों की तरह, पत्थर से बने सपने में।
मैं उनसे हाथ मिलाता हूँ, एक एक करके। मैं सलाम करता हूँ उन्हें।
और फिर मैं दूसरे मुल्क को अपना सफ़र जारी रखता हूँ
और बात करता रहता हूँ मृगमरीचिका और बरसात के बीच के अंतर के बारे में।
मैं पूछता हूँ: क्या यह सच है भली देवियो और सज्जनो,
कि यह इंसान की धरती सभी मनुष्यों के लिए है?
फ़िलीस्तीनी कवि - महमूद दरवेश
संकलन - Unfortunately, It was Paradise
प्रकाशन- यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफोर्निआ प्रेस, 2003
अनुवाद एवं संपादन - Munur Akash and Carolyn Forche
with Simon Antoon and Amira El-Zein
अंग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद - अपूर्वानंद
तीन मिनट आज़ादी के और मान्यता के,
कॉन्फ़रेंस हमारे लौटने के अधिकार को स्वीकार करती है ,
सारी मुर्ग़ियों और घोड़ों की तरह, पत्थर से बने सपने में।
मैं उनसे हाथ मिलाता हूँ, एक एक करके। मैं सलाम करता हूँ उन्हें।
और फिर मैं दूसरे मुल्क को अपना सफ़र जारी रखता हूँ
और बात करता रहता हूँ मृगमरीचिका और बरसात के बीच के अंतर के बारे में।
मैं पूछता हूँ: क्या यह सच है भली देवियो और सज्जनो,
कि यह इंसान की धरती सभी मनुष्यों के लिए है?
फ़िलीस्तीनी कवि - महमूद दरवेश
संकलन - Unfortunately, It was Paradise
प्रकाशन- यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफोर्निआ प्रेस, 2003
अनुवाद एवं संपादन - Munur Akash and Carolyn Forche
with Simon Antoon and Amira El-Zein
अंग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद - अपूर्वानंद
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विदेशी कविता,
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बुधवार, 20 नवंबर 2013
होना ( by Mahmoud Darwish)
हम यहाँ खड़े हैं. बैठे हैं. यहाँ हैं. अनश्वर यहाँ.
और हमारा बस एक ही मकसद है :
होना.
फिर हम हर चीज़ पर असहमत होंगे ;
राष्ट्रध्वज की डिजाइन पर
(बेहतर हो मेरे ज़िंदा लोगो
अगर तुम चुनो एक भोले गधे का प्रतीक)
और हम नए राष्ट्रगान पर असहमत होंगे
(बेहतर हो अगर तुम चुनो एक गाना कबूतरों के ब्याह का)
और हम असहमत होंगे औरतों के कर्तव्य पर
(बेहतर हो अगर तुम चुनो एक
औरत को सुरक्षा प्रमुख के रूप में)
हम प्रतिशत पर असहमत होंगे, निजी पर और सार्वजनिक पर,
हम हरेक चीज़ पर असहमत होंगे. और हमारा एक ही मकसद होगा :
होना...
उसके बाद मौक़ा मिलता है और
मकसद चुनने का.
फ़िलीस्तीनी कवि - महमूद दरवेश
संकलन - द बटरफ्लाई'ज़ बर्डन
प्रकाशक - कॉपर कैनियन प्रेस, वाशिंगटन, 2007
अरबी से अंग्रेज़ी अनुवाद - फैडी जूडा
अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद - अपूर्वानंद
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शुक्रवार, 15 नवंबर 2013
पहरेदार से (To a guard by Mahmoud Darwish)
(एक पहरेदार से:) मैं तुम्हें सिखाऊँगा इन्तजार करना
मेरी स्थगित मौत के दरवाजे पर
धीरज रखो, धीरज रखो
हो सकता है तुम मुझसे थक जाओ
और अपनी छाया मुझसे उठा लो
और अपनी रात में प्रवेश करो
बिना मेरे प्रेत के !
.......
(एक दूसरे पहरेदार से:) मैं तुम्हें सिखाऊँगा इन्तजार करना
एक कॉफीघर के प्रवेशद्वार पर
कि तुम सुन सको अपने दिल की धड़कन को धीमा होते, तेज़ होते
तुम शायद जान पाओ सिहरन जैसे कि मैं जानता हूँ
धीरज रखो,
और तुम शायद गुनगुना सको एक प्रवासी धुन
अन्दालुसियायी तकलीफ में, और परिक्रमा में फारसी
तब चमेली भी तकलीफ देती है तुम्हें और तुम चले जाते हो
.......
(एक तीसरे पहरेदार से:) मैं तुम्हें इन्तजार करना सिखाऊँगा
एक पत्थर की बेंच पर, शायद
हम बताएँगे एक-दूसरे को अपने नाम. तुम शायद देख पाओ
एक ज़रूरी मुस्कराहट हम दोनों के दरम्यान:
तुम्हारी एक माँ है
और मेरी एक माँ है
और हमारी एक ही बारिश है
और हमारा एक ही चाँद है
और एक छोटी सी अनुपस्थिति खाने की मेज से.
फ़िलीस्तीनी कवि - महमूद दरवेश
संकलन - द बटरफ्लाई'ज़ बर्डन
प्रकाशक - कॉपर कैनियन प्रेस, वाशिंगटन, 2007
अरबी से अंग्रेज़ी अनुवाद - फैडी जूडा
अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद - अपूर्वानंद
लेबल:
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गुरुवार, 14 नवंबर 2013
एक मुल्क (A country by Mahmoud Darwish)
एक मुल्क पौ फटने के कगार पर,
कुछ ही पलों में
ग्रह सो जाएँगे शायरी की जुबान में.
कुछ ही पलों में हम इस लम्बे रास्ते को विदा कहेंगे
और पूछेंगे : कहाँ से हम शुरुआत करें ?
कुछ ही पलों में
हम अपने खूबसूरत पर्वत नार्सीसस को सावधान करेंगे
अपने ही प्रतिबिम्ब से उसके मोह के खिलाफ; तुम अब और
शायरी के काबिल
नहीं, इसलिए देखो
राहगीर की ओर
फ़िलीस्तीनी कवि - महमूद दरवेश
संकलन - द बटरफ्लाई'ज़ बर्डन
प्रकाशक - कॉपर कैनियन प्रेस, वाशिंगटन, 2007
संकलन - द बटरफ्लाई'ज़ बर्डन
प्रकाशक - कॉपर कैनियन प्रेस, वाशिंगटन, 2007
अरबी से अंग्रेज़ी अनुवाद - फैडी जूडा
अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद - अपूर्वानंद
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शनिवार, 27 जुलाई 2013
शब्द (Words by Mahmoud Darwish)
मेरे शब्द जब गेहूँ थे
मैं था धरती.
मेरे शब्द जब रोष थे
मैं था तूफ़ान.
मेरे शब्द जब चट्टान थे
मैं था नदी.
जब मेरे शब्द बन गए शहद
मक्खियों ने मेरे होंठ ढँक लिए.
फिलिस्तीनी कवि - महमूद दरवेश
संग्रह - जॉन बर्जर की किताब 'होल्ड एवरीथिंग डियर' में उद्धृत
प्रकाशक - वर्सो, लंडन-न्यू यॉर्क, 2007
अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद - अपूर्वानंद
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