पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्य को शनि का पिता बताया गया है. लेकिन शनिदेव अपने पिता सूर्य से शत्रुता का भाव रखते हैं. सूर्य और शनि के गुणों और विशेषताओं में परस्पर विरोध है इसलिए जब भी कुंडली में सूर्य व शनि की युति/Kundli Me Surya Shani ki Yuti होती है तो इनके अशुभ फल व्यक्ति को मिलते हैं. वैदिक ज्योतिष में सूर्य और शनि को एक दूसरे का कट्टर विरोधी माना गया है. इस बात का अनुमान आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जिस राशि मे सूर्य उच्च का होता है उसी राशि में शनि नीच का होता है और जिस राशि में शनि उच्च का होता है उसी राशि में सूर्य नीच का होता है. सूर्य सात्विकता, गर्मी, रोशनी और ऊर्जा का कारक है तो वही शनि नीरसता, शीतलता, अंधकार व तामसिकता का कारक ग्रह है. सूर्य जीवनदायिनी ग्रह है तो शनि मृत्यु का कारक ग्रह है. सूर्य की रौशनी शनि के अंधकार को समाप्त कर देती है.
सूर्य और शनि ग्रह की विशेषताएं
सूर्य अग्नि तत्व प्रधान है तो शनि वायु तत्व प्रधान है. सूर्य गर्म प्रकृति का ग्रह है तो शनि ठंडे स्वभाव का ग्रह है. सूर्य पूर्व दिशा का स्वामी है तो शनि पश्चिम दिशा का स्वामी है. सूर्य सफलता, पद-प्रतिष्ठा व मान-सम्मान का कारक है तो शनि दुख, कष्ट, विपत्ति व हानि का कारक है. बली सूर्य सफलता प्रदान करता है तो शनि संघर्ष व बाधाओं का कारक है. सूर्य सात्विकता, आत्मा, उर्जा, साहस, भव्यता, प्रकाश, जीवनी शक्ति, पिता, सफलता, स्वास्थ्य, आरोग्यता, औषधि आदि का कारक है. नेत्र ज्योति, शरीर की हड्डियां, हृदय व पाचन संस्थान पर सूर्य का अधिकार रहता है तो वही शनि को तामसिक, नीरस, योगी, तपस्वी और अनुशासनप्रिय ग्रह माना जाता है. शनि प्रकाशहीन और ठंडा ग्रह है. यह आलस्य, गरीबी, दुःख, जटिल व लंबी बीमारी और मृत्यु का कारक ग्रह है. शनि कष्ट, दुख, और विपत्ति का नैसर्गिक कारक है इसलिए इसे भारतीय ज्योतिष/Indian Astrology में पापी ग्रह की संज्ञा दी गई है. शनि की अशुभता व्यक्ति के जीवन में संघर्ष और कठिनाइयाँ पैदा करती हैं.
सूर्य और शनि युति का महत्व
सूर्य और शनि की युति/Surya Shani ki Yuti होने से दोनों ग्रहों के बीच में एक ग्रह युद्ध छिड़ता है और दोनों ग्रह एक दूसरे को पीड़ित करते हैं इसलिए सूर्य और शनि की युति को ज्योतिष शास्त्र में अच्छा नहीं माना गया है.
सूर्य व शनि की युति कुंडली/Kundli के जिस भाव में बन रही हो तो उस भाव से संबंधित सगे-संबंधियों के सुख की कमी होती है या उस मनुष्य से आपका अलगाव हो सकता है. उदाहरण के लिए अगर सप्तम भाव में सूर्य-शनि की युति हो तो आपको पत्नी या पति का सुख नहीं मिलता है या इनसे आपका अलगाव हो सकता है. सूर्य-शनि की युति से आपके जीवन में संतान सुख की कमी हो सकती है. सूर्य शनि की युति से आप पितृ सुख से वंचित हो सकते हैं. हालांकि कुछ विशेष लग्न की कुंडलियों में सूर्य-शनि की युति/Sun and Saturn Conjunction in Kundli व्यक्ति को उसके कार्यक्षेत्र में काफी मान-सम्मान व सफलता भी प्रदान करती है लेकिन शुरुआती स्तर पर आपको अपने जीवन में काफी संघर्षों व रुकावटों का सामना करना पड़ सकता है. सूर्य-शनि की युति के कारण आप सरकारी नौकरी/Government Job भी कर सकते हैं क्योंकि शनि आपका कर्म है तो सूर्य का संबंध सरकार व सरकारी महकमों से है.
शनि सूर्य युति का प्रभाव
सूर्य शनि की युति हो तो पिता और पुत्र में वैचारिक मतभेद हो सकते हैं. यह युति पिता के सुख, उनका स्वास्थ्य तथा लोगों के कार्यक्षेत्र व मान-सम्मान में कमी करती है. आपके अपने पिता से संबंध अच्छे नहीं रह पाते हैं. सूर्य के निर्बली होने पर आप पितृ सुख से शीघ्र ही वंचित हो सकते हैं या पिता से आपका अलगाव हो सकता है. इस युति के कारण आपका स्वास्थ्य भी प्रभावित/Health Issues हो सकता है. इस युति के कारण व्यक्ति की बुद्धि मलिन हो सकती है. संतान सुख में भी कमी हो सकती है. ऐसे व्यक्ति को डिप्रेशन, मानसिक विकार, उदासी और निराशा घेरे रह सकती है. सूर्य-शनि की युति या प्रतियुति मनुष्य के जीवन को पूर्णत: संघर्षमय बनाती है. विशेषत: जब यह युति कुंडली के अशुभ भावों(6, 8, 12 भाव) में बन रही हो तो व्यक्ति को कठोर परिश्रम व कड़े संघर्ष के बाद ही जीवन में सफलता मिलती है.
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